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अनुभूति में रामेश्वर कांबोज हिमांशु की रचनाएँ--

छंदमुक्त में-
आम आदमी
कविता क्या है
कहाँ चले गए हैं गिद्ध
पुरबिया मजदूर

अंजुमन में—
अंगार कैसे आ गए
अधर पर मुस्कान
आजकल
इंसान की बातें
ज़िंदगी की लहर
मुस्कान तुम्हारी

हास्य व्यंग्य में—
कर्मठ गधा
कविजी पकड़े गए

पुलिस परेशान

दोहों में—
गाँव की चिट्ठी
वासंती दोहे

कविताओं में—
ज़रूरी है
बचकर रहना
बेटियों की मुस्कान
मैं घर लौटा

मुक्तकों में—
सात मुक्तक

क्षणिकाओं में—
दस क्षणिकाएँ

गीतों में—
आ भाई सूरज
आसीस अंजुरी भर
इस बस्ती मे
इस शहर में
इस सभा में
उजियारे के जीवन में

उदास छाँव
उम्र की चादर की
कहाँ गए
कितना अच्छा होता
खड़े यहाँ पर ठूँठ
गाँव अपना
तुम बोना काँटे
दिन डूबा
धूप की चादर
धूप ने
ये घर बनाने वाले
लेटी है माँ

संकलन में—
नई भोर
नया उजाला

  कविता क्या है ?

भोर में पाखी का कलरव गान
फिर नील गगन में
पंख खोलकर तैरना
लेना ऊँची उड़ान।
किसलय की नोक पर फिसलती ओस की बूँद
पहाड़ की तलहटी में
झरने का मधुर गान।
गरम लोहे पर
पसीने से तरबतर
हथौड़ा चलाते मज़दूर की थकान
लहलाती फ़सल के
पकने के इन्तज़ार में
हुक्का गड़गुड़ाता किसान।
शिशु को चूमती हुई
दुनिया से बेखबर
माँ की हल्की मुस्कान।
कल लड़ने के बाद
आज फ़िर से मिल-जुलकर
खेलते बच्चे।
किवाड़ के पल्ले पर कुहनी टिकाए
पति–प्रतीक्षारत
देहरी पर खड़ी पत्नी।
खेतों में धमाचौकड़ी मचाता बछड़ा
गली के नुक्क्ड़ पर बिल्ली के साथ
अठखेलियाँ करता पिल्ला
यही तो कविता है।

२० सितंबर २०१०
 

 


 

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