अनुभूति में
रामेश्वर कांबोज
हिमांशु
की रचनाएँ--
माहिया में-
आँखों में दरिया
अंजुमन में—
अंगार कैसे आ गए
अधर पर मुस्कान
आजकल
इंसान की बातें
ज़िंदगी की लहर
मुस्कान तुम्हारी
हास्य व्यंग्य
में—
कर्मठ गधा
कविजी पकड़े गए
पुलिस परेशान
दोहों में—
गाँव की चिट्ठी
वासंती दोहे
कविताओं में—
ज़रूरी है
बचकर रहना
बेटियों की
मुस्कान
मैं घर लौटा
मुक्तकों में—
सात
मुक्तक
क्षणिकाओं में—
दस क्षणिकाएँ
गीतों में—
आ भाई सूरज
आसीस अंजुरी भर
इस बस्ती में
इस शहर में
इस सभा में
उजियारे के जीवन में
उदास छाँव
उम्र की
चादर की
कहाँ गए
गाँव अपना
तुम बोना काँटे
दिन डूबा
धूप
की चादर
धूप ने
लेटी है माँ
संकलन में—
नई भोर
नया उजाला
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आँखों में दरिया
(माहिया)
माहिया पंजाब के प्रेम गीतों का प्राण है । पहले इसके विषय
प्रमुख रूप से प्रेम के दोनों पक्ष- संयोग और विप्रलम्भ रहे
हैं। वर्तमान में इस गीत में सभी सामाजिक सरोकारों का समावेश
होता है। तीन पंक्तियों के इस छ्न्द में पहली और तीसरी पंक्ति
में १२ -१२ मात्राएँ तथा दूसरी पंक्ति में १० मात्राएँ होती
हैं। पहली और तीसरी पंक्तियाँ तुकान्त होती है।
(कवि का वक्तव्य)
१
आँसू जब बहते हैं
कितना दर्द भरा
सब कुछ वे कहते हैं।
२
ये भोर सुहानी है
चिड़ियाँ मन्त्र पढ़ें
सूरज सैलानी है।
३
मन-आँगन सूना है
वो परदेस गए
मेरा दु:ख दूना है।
४
मिलने का जतन नहीं
बैठे चलने को
नयनों में सपन नहीं।
५
यह दर्द नहीं बँटता
सुख जब याद करें
दिल से न कभी हटता ।
६
नदिया यह कहती है-
दिल के कोने में
पीड़ा ही रहती है ।
७
यह बहुत मलाल रहा
बहरों से अपना
क्यों था सब हाल कहा।
८
दिल में तूफ़ान भरे
आँखों में दरिया
हम इनमें डूब मरे।
९
दीपक -सा जलना था
बाती प्रेम -पगी
कब हमको मिलना था।
१०
तूफ़ान-घिरी कलियाँ
दावानल लहका
झुलसी सारी गलियाँ।
१९ दिसंबर २०११ |