अनुभूति में
प्राण शर्मा की रचनाएँ—
नई रचनाएँ—
एक पैसा खोने पर
कैसे कैसे खेल
बात पूछो
बातों में कुछ ऐसे
गीतों में
गीत अंजुमन में—
अपनी कथा
आदतें उसकी
उड़ते हैं हज़ारों आकाश में
क्यों न महके
कर के अहसान
कितनी हैरानी
कुछ ऐसा प्यारा सा जादू
खुशी अपनी करे साझी
गुनगुनी सी धूप
घर पहुँचने का रास्ता
चेहरों पर हों
छिटकती है चाँदनी
ज़ुल्मों का मारा भी है
ताना बाना
तितलियाँ
तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नफरत का भूत
नित नई नाराज़गी
पंछी
फुरसतों के शहर में
बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते हैं
हर एक को
हर किसी के घर का
हर लफ्ज़ कहानी है
हाथीघोड़ा बन कर
संकलन में
प्यारी
प्यारी होली में |
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कैसे-कैसे खेल
कैसे-कैसे खेल बुढ़ापे, बचपन के दिखलाता है
बूढ़ों में बूढ़ा, बच्चों में बच्चा वो बन जाता है
जिस से भी मिलता है उसको अपने गले लगाता है
इसीलिये वो हर मानुष के मानस पर छा जाता है
उस की हमदर्दी और उस की सेवा के क्या कहने हैं
सब के दुख में दुखी हो कर वो दौड़ेदौड़े आता है
उसकी संगत पाने वाले क्यों न भला खुशहाल दिखें
हर इक की नज़रों में वो तो दाताओं का दाता है
कोई उसे हमदर्द कहे और कोई उसे मनमौजी जी
उस से पूछो नाम उस का तो प्यारे लाल बताता है
१७ नवंबर २०१४
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