अनुभूति में
प्राण शर्मा की रचनाएँ—
नई रचनाएँ—
अपनी कथा
कुछ ऐसा प्यारा सा जादू
खुशी अपनी करे साझी
नफरत का भूत
गीतों में-
गीत अंजुमन में—
आदतें उसकी
उड़ते हैं हज़ारों आकाश में
क्यों न महके
कर के अहसान
कितनी हैरानी
गुनगुनी सी धूप
घर पहुँचने का रास्ता
चेहरों पर हों
छिटकती है चाँदनी
ज़ुल्मों का मारा भी है
तितलियाँ
तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नित नई नाराज़गी
पंछी
बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते हैं
हर एक को
हर किसी के घर का संकलन में-
प्यारी
प्यारी होली में |
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हम कहाँ उनको
याद आते हैं
हम कहाँ उनको याद आते हैं
भूलने वाले भूल जाते हैं
साथ कब उम्र भर निभाते हैं
लोग रस्तों में छोड़ जाते हैं
मुस्कराहट हमारी देखते हो
हम तो ग़म में भी मुस्कराते हैं
कोई खाए न खाए खौफ उनका
हम बुजुर्गों का खौफ खाते हैं
झूठ का क्यों न बोलबाला हो
लोग सच का गला दबाते हैं
नुक्ता चीनों की बात करते हो
नुक्ताचीं किसको रास आते हैं
मुफ्त की चीजों का कमाल कहें
खुद ब खुद लोग दौड़े आते हैं
६ सितंबर २०१०
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