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नित नई नाराज़गी
पंछी

बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते है
हर एक को
हर किसी के घर का

संकलन में- प्यारी प्यारी होली में

 

नित नई नाराजगी

नित नयी नाराज़गी अच्छी नहीं
प्यार में रस्साकशी अच्छी नहीं

दिल्लगी ज़िन्दादिलों से कीजिये
दिलजलों से दिल्लगी अच्छी नहीं

एक रब है और हैं मजहब कई
बात दुनिया में यही अच्छी नहीं

ज़िन्दगी से प्यार करते हो मगर
कहते हो कि ज़िन्दगी अच्छी नहीं

मुस्कराओ कुछ तो जीवन में कभी
हर घड़ी संजीदगी अच्छी नहीं

" प्राण " मिलते हैं कहाँ ये रोज़ - रोज़
दोस्तों से दुश्मनी अच्छी नहीं

२५ जुलाई २०११


 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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