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गीत

अंजुमन में—
आदतें उसकी
उड़ते हैं हज़ारों आकाश में
क्यों न महके
कर के अहसान
कितनी हैरानी
गुनगुनी सी धूप
घर पहुँचने का रास्ता

चेहरों पर हों
छिटकती है चाँदनी
ज़ुल्मों का मारा भी है
तितलिया
तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नित नई नाराज़गी
पंछी

बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते है
हर एक को
हर किसी के घर का

संकलन में- प्यारी प्यारी होली में

 

आदते उसकी

आदतें उसकी सभी पहचानता हूँ मैं
आदमी हूँ आदमी को जानता हूँ मैं

खामियाँ मुझमें बहुत हैं मानता हूँ मैं
खूबियाँ भी कम नहीं हैं जानता हूँ मैं

हर किसी में ढूँढता है गलतियाँ ये दिल
क्या करूँ, फितरत है इसकी जानता हूँ मैं

जाने कब, कैसे, कहाँ से आती है मुश्किल
जब कभी ए राम जी कुछ ठानता हूँ मैं

जीता हूँ कुछ इस कदर उसकी ही चाहत में
ख़ाक दुनिया भर की गोया छानता हूँ मैं

जा नहीं वापस कड़कती धूप में जानम
शामियाना प्यार से ले तानता हूँ मैं

जब कभी कुछ इल्म मिलता है मुझे उससे
बच्चे का भी "प्राण" अहसां मानता हूँ मैं

६ सितंबर २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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