कर के अहसान
करके अहसान नित जताते हो
दोस्ती क्या यूँ ही निभाते हो
शक के अम्बार दिल में क्यों न
लगें
वक़्त-बेवक़्त घर तुम आते हो
याद रखते हो सबके वादों के
अपने वादे ही भूल जाते हो
तुमसे मिलना भी कोई मिलना है
जब भी मिलता हूँ आज़माते हो
तुम ही जानो या राम ही जाने
हँसते हो या हँसी उड़ाते हो
९ नवंबर २००९ |