अनुभूति में
प्राण शर्मा की रचनाएँ—
नई रचनाएँ—
अपनी कथा
कुछ ऐसा प्यारा सा जादू
खुशी अपनी करे साझी
नफरत का भूत
गीतों में-
गीत अंजुमन में—
आदतें उसकी
उड़ते हैं हज़ारों आकाश में
क्यों न महके
कर के अहसान
कितनी हैरानी
गुनगुनी सी धूप
घर पहुँचने का रास्ता
चेहरों पर हों
छिटकती है चाँदनी
ज़ुल्मों का मारा भी है
तितलियाँ
तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नित नई नाराज़गी
पंछी
बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते हैं
हर एक को
हर किसी के घर का संकलन में-
प्यारी
प्यारी होली में |
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हर किसी के घर
का हर किसी के घर का
रखते हैं हिसाब
लोग वे जो होते हैं दिल के खराब
खैर ख्वाहों में भी वो खामोश है
वो जो सच्चा हो तो दे कोई जवाब
पूछता हूँ आपसे के गाली में
आपको अच्छा लगेगा क्या जवाब
देखने में भी तो लगता है हसीं
सिर्फ़ खुशबू ही नहीं देता गुलाब
कोई क्या पूछे कभी उससे कि वो
माँगने पर भी नहीं देता जवाब
दुःख हुआ होगा मुझे कितना ये सोच
फाड़ डाली तुमने है मेरी किताब
२५ जुलाई २०११
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