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चेहरों पर हों
छिटकती है चाँदनी
ज़ुल्मों का मारा भी है
तितलिया
तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नित नई नाराज़गी
पंछी

बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते है
हर एक को
हर किसी के घर का

संकलन में- प्यारी प्यारी होली में

 

नाम उसका

नाम उसका तेरे लब पर आया
तेरे मुँह में घी - शक्कर
तूने कैसा जादू जगाया
तेरे मुँह में घी - शक्कर

खुशखबरी साजन की लाया
तेरे मुँह में घी - शक्कर
तू जैसे रब बन कर आया
तेरे मुँह में घी - शक्कर

तेरा बोल जिसे सुनने को
कान तरसते थे मेरे
लगा कि तूने सुर को सजाया
तेरे मुँह में घी-शक्कर

ए मेरे हमदर्द हमेशा
तूने मेरे साजन का
मुझ तक संदेशा पहुँचाया
तेरे मुँह में घी - शक्कर

क्यों न ढिंढोरा पीटूँ जग में
तेरे मीठे बोलों से
मन को क्या - क्या रास न आया
तेरे मुँह में घी - शक्कर

२५ जुलाई २०११
 


 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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