अनुभूति में
प्राण शर्मा की रचनाएँ—
नई रचनाएँ—
अपनी कथा
कुछ ऐसा प्यारा सा जादू
खुशी अपनी करे साझी
नफरत का भूत
गीतों में-
गीत अंजुमन में—
आदतें उसकी
उड़ते हैं हज़ारों आकाश में
क्यों न महके
कर के अहसान
कितनी हैरानी
गुनगुनी सी धूप
घर पहुँचने का रास्ता
चेहरों पर हों
छिटकती है चाँदनी
ज़ुल्मों का मारा भी है
तितलियाँ
तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नित नई नाराज़गी
पंछी
बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते हैं
हर एक को
हर किसी के घर का संकलन में-
प्यारी
प्यारी होली में |
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गीत
ओ मेरे बचपन के साथी
तेरी चिट्ठी के उत्तर में
तुझको कुछ बातें लिक्खी हैं
जिनको पढ़कर,जिनको गुनकर
शायद तुझमें हिम्मत जागे,
शायद तेरी किस्मत जागे
मन के अनचाहे कोने से
कंकर - पत्थर ही ढोने से
अपनी किस्मत को रोने से
केवल तन को ही धोने से
आठों पहरों ही सोने से
दुःख को हरना नामुमकिन है
दुःख से उबरना नामुमकिन है
ओ मेरे बचपन के साथी
तेरी चिट्ठी के उत्तर में
तुझको कुछ बातें लिक्खी हैं
जिनको पढ़कर, जिनको गुनकर
शायद तुझमें हिम्मत जागे
शायद तेरी किस्मत जागे
पस्ती के नगमें मत गाना
असफलता से मत घबराना
आलस का पुतला दफनाना
धुंध मिटाना, राह बनाना
सोच समझ कर बढ़ते जाना
बढ़ते जाना, भूल न जाना
रस्ता जाना औ पहचाना
ओ मेरे बचपन के साथी
तेरी चिट्ठी के उत्तर में
तुझको कुछ बातें लिक्खी हैं
जिनको पढ़कर, जिनको गुनकर
शायद तुझमें हिम्मत जागे
शायद तेरी किस्मत जागे
क्यों खोया सा हो तेरा मन
क्यों ना फुर्तीला सा हो तन
जीवन में कठपुतली मत बन
हो जैसे होता है चन्दन
खुशी करे तेरा अभिनन्दन
तेरी हर इक चाह खिलेगी
तुझको वांछित चीज़ मिलेगी
ओ मेरे बचपन के साथी
तेरी चिट्ठी के उत्तर में
तुझको कुछ बातें लिक्खी हैं
जिनको पढ़कर, जिनको गुनकर
शायद तुझ में हिम्मत जागे
शायद तेरी किस्मत जागे
जब भी कोई मीत बनाना
सच्चे मन से साथ निभाना
साथ निभाना, भूल न जाना
अच्छे दिनों में सब याराना
हर इक के मन को तू भाना
खुशियाँ तुझको लाख मिलेंगी
मन की कलियाँ खूब खिलेंगी
ओ मेरे बचपन के साथी
तेरी चिट्ठी के उत्तर में
तुझको कुछ बातें लिक्खी हैं
जिनको पढ़कर, जिनको गुनकर
शायद तुझमें हिम्मत जागे
शायद तेरी किस्मत जागे
जब तेरे मन में बल होगा
उजला तेरा हर पल होगा
पल तो क्या उजला कल होगा
हर मसले का ही हल होगा
जीवन भी मीठा फल होगा
तेरी जीत का शंख बजेगा
एक नया इतिहास रचेगा
ओ मेरे बचपन के साथी
तेरी चिट्ठी के उत्तर में
तुझको कुछ बातें लिक्खी हैं
जिनको पढ़कर, जिनको गुनकर
शायद तुझ में हिम्मत जागे
शायद तेरी किस्मत जागे
६ सितंबर २०१०
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