छिटकती है
चाँदनी
चेहरे पे आप के हो भला क्यों न
रौशनी
सुनते हैं पाँचों उँगलियाँ हैं घी में आपकी
हर चीज हाथ आई है माना कि आपके
अपना ही साया हाथ में आया है क्या कभी
कुछ तो ख्याल कीजिए अपने घरों का आप
जैसे ख्याल करते हैं सरहद का संतरी
हर चीज व्यर्थ जान के कूड़े में फेंक
मत
हर चीज का महत्व है क्या फूल क्या कली
माना की होनहार है हर बात में मगर
दुनिया के इल्म में अभी बच्चा है आदमी
जानेंगे तुझको लोग सभी कल को देखना
माना की आज उनके लिए तू है अजनबी
इक से किसी के दिन नहीं होते हैं
साहबों
क्या एक जैसी रोज छिटकती है चाँदनी
४ फ़रवरी २००८
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