मुँडेरों
पर बैठे कौओं
जबकि लोग किया करते हैं शंका
ज्ञानी-ध्यानी पर
क्यों न बढ़ेगा रोष सभी में मूरख की अगवानी पर
कैसा था वो युग वो कैसी दुनिया
थी, हैरान हूँ मैं
जबकि रचे जाते थे किस्से केवल राजा-रानी पर
बालिग करता कोई गलती गुस्सा
करना जायज़ था
कैसा गुस्सा मेरे भाई बच्चे की नादानी पर
शुक्र मना जो तेरे दुख में आँसू
बहाने लोग आए
वरना हर कोई रोता है अपनी राम कहानी पर
मुँडेरों पर बैठे कौओ कौन
सुनेगा तुम्हें यहाँ
दुनियावाले तो मरते हैं कोयल की मृदु बानी पर
'प्राण' जरूरत थी पानी की जब
धरती पर सूखा था
उस पानी से क्या लेना जो पानी बरसा पानी पर
२४ सितंबर २००३
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