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गीतों में-
गीत

अंजुमन में—
आदतें उसकी
उड़ते हैं हज़ारों आकाश में
क्यों न महके
कर के अहसान
कितनी हैरानी
गुनगुनी सी धूप
घर पहुँचने का रास्ता

चेहरों पर हों
छिटकती है चाँदनी
ज़ुल्मों का मारा भी है
तितलिया
तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नित नई नाराज़गी
पंछी

बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते है
हर एक को
हर किसी के घर का

संकलन में- प्यारी प्यारी होली में

  मुँडेरों पर बैठे कौओं

जबकि लोग किया करते हैं शंका ज्ञानी-ध्यानी पर
क्यों न बढ़ेगा रोष सभी में मूरख की अगवानी पर

कैसा था वो युग वो कैसी दुनिया थी, हैरान हूँ मैं
जबकि रचे जाते थे किस्से केवल राजा-रानी पर

बालिग करता कोई गलती गुस्सा करना जायज़ था
कैसा गुस्सा मेरे भाई बच्चे की नादानी पर

शुक्र मना जो तेरे दुख में आँसू बहाने लोग आए
वरना हर कोई रोता है अपनी राम कहानी पर

मुँडेरों पर बैठे कौओ कौन सुनेगा तुम्हें यहाँ
दुनियावाले तो मरते हैं कोयल की मृदु बानी पर

'प्राण' जरूरत थी पानी की जब धरती पर सूखा था
उस पानी से क्या लेना जो पानी बरसा पानी पर

 २४ सितंबर २००३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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