अनुभूति में
प्राण शर्मा की रचनाएँ—
नई रचनाएँ—
अपनी कथा
कुछ ऐसा प्यारा सा जादू
खुशी अपनी करे साझी
नफरत का भूत
गीतों में-
गीत अंजुमन में—
आदतें उसकी
उड़ते हैं हज़ारों आकाश में
क्यों न महके
कर के अहसान
कितनी हैरानी
गुनगुनी सी धूप
घर पहुँचने का रास्ता
चेहरों पर हों
छिटकती है चाँदनी
ज़ुल्मों का मारा भी है
तितलियाँ
तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नित नई नाराज़गी
पंछी
बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते हैं
हर एक को
हर किसी के घर का संकलन में-
प्यारी
प्यारी होली में |
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पंछी
इस तरफ़ और उस तरफ उड़ा हुआ
पंछी
जाने क्या - क्या ढूँढता है मनचला पंछी
छू रहा है व्योम की ऊँचाइयाँ दिन भर
सोच में डूबा हुआ इक आस का पंछी
ढूँढता है हर घड़ी छाया घने तरु की
गर्मियों की धूप में जलता हुआ पंछी
आ ही जाता है कभी सैयाद की ज़द में
एक दाने के लिए भटका हुआ पंछी
बिजलियों का शोर था यूँ तो घड़ी भर का
घोंसले में देर तक सहमा रहा पंछी
था कभी आज़ाद औरों की तरह लेकिन
बिन किसी अपराध के बंदी बना पंछी
हाय री मजबूरियाँ, लाचारियाँ उसकी
उड़ न पाया आसमां में पर कटा पंछी
भूला अपनी सब उड़ानें, पिंजरे में फिर भी
एक नर्तक की तरह नाचा सदा पंछी
बन नहीं पाया कभी इंसान भी वैसा
जैसा बरखुरदार सा बन कर रहा पंछी
छोड़ कर तो देखिए इक बार आप उसको
फडफडा कर वेग से उड़ जाएगा पंछी
देखते ही रह गईं आँखें ज़माने की
राम जाने किस दिशा में उड़ गया पंछी
६ सितंबर २०१०
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