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तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नित नई नाराज़गी
पंछी

बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते है
हर एक को
हर किसी के घर का

संकलन में- प्यारी प्यारी होली में

 

बेवजह ही यातना

बेवज़ह ही यातना क्योंकर सहूँ
किसलिए ए दोस्तों मैं चुप रहूँ

मैं तो मस्ताना हूँ ,दीवाना नहीं
किसलिए वीरान में जाकर रहूँ

मैंने रक्खा है बुज़ुर्गी में कदम
मैं बुज़ुर्गों-सा भला क्यों ना रहूँ

जानवर को जानवर कहता हूँ मैं
आदमी को आदमी क्यों ना कहूँ

बेवज़ह तारीफ़ कोई क्यों करे
बेवज़ह क्यों 'प्राण' चर्चा में रहूँ

९ नवंबर २००९

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