बेवजह ही
यातना
बेवज़ह ही यातना क्योंकर सहूँ
किसलिए ए दोस्तों मैं चुप रहूँ
मैं तो मस्ताना हूँ ,दीवाना
नहीं
किसलिए वीरान में जाकर रहूँ
मैंने रक्खा है बुज़ुर्गी में
कदम
मैं बुज़ुर्गों-सा भला क्यों ना रहूँ
जानवर को जानवर कहता हूँ मैं
आदमी को आदमी क्यों ना कहूँ
बेवज़ह तारीफ़ कोई क्यों करे
बेवज़ह क्यों 'प्राण' चर्चा में रहूँ
९ नवंबर २००९
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