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गीत

अंजुमन में—
अपनी कथा
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क्यों न महके
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खुशी अपनी करे साझी
गुनगुनी सी धूप
घर पहुँचने का रास्ता

चेहरों पर हों
छिटकती है चाँदनी
ज़ुल्मों का मारा भी है
ताना बाना
तितलिया
तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नफरत का भूत
नित नई नाराज़गी
पंछी

फुरसतों के शहर में
बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते है
हर एक को
हर किसी के घर का

हर लफ्ज़ कहानी है
हाथीघोड़ा बन कर

संकलन में प्यारी प्यारी होली में

 

बात पूछो

बात पूछो, सवाल करते हैं
लोग भी क्या कमाल करते हैं

हर किसी को निहाल करते हैं
नेक बन्दे कमाल करते हैं

जो बुजुर्गों की कुछ नहीं सुनते
अपना जीना मुहाल करते हैं

नाम यूँ ही कभी नहीं होता
पैदा कोई मिसाल करते हैं

किस को अपना कहूँ, यहाँ सब ही
अपनाअपना ख़याल करते हैं

वो जो अपनों की भी नहीं सुनते
अपना जीना मुहाल करते हैं

१७ नवंबर २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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