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तितलिया
तुमसे दिल में
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नफरत का भूत
नित नई नाराज़गी
पंछी

बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते है
हर एक को
हर किसी के घर का

संकलन में- प्यारी प्यारी होली में

 

हाथी-घोड़ा बन कर

हाथी-घोड़ा बन कर उनको खुश सौ बार किया करते हैं
लोग बुज़ुर्गी में बच्चों से कितना प्यार किया करते हैं

रस्ते की हर कठिनाई को अंगीकार किया करते हैं
चलने से पहले जो सब कुछ सोच-विचार किया करते हैं

सब्र किसे कहते हैं यारो वो क्या जानें, वो क्या समझें
हर सुविधा को पा कर भी जो हाहाकार किया करते हैं

बेचारे काँटों की कीमत वे आँके ये नामुमकिन है
व्यापारी तो फूलों का ही कारोबार किया करते हैं

उनसे मिलना कितना अच्छा लगता है ऐ "प्राण" सभी को
बच्चे क्या, बूढ़ों से भी जो सद्व्यवहार किया करते हैं

१० मार्च २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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