अनुभूति में
प्राण शर्मा की रचनाएँ—
नई रचनाएँ—
ताना बाना
फुरसतों के शहर में
हर लफ्ज़ कहानी है
हाथी-घोड़ा बन कर
गीतों में-
गीत अंजुमन में—
अपनी कथा
आदतें उसकी
उड़ते हैं हज़ारों आकाश में
क्यों न महके
कर के अहसान
कितनी हैरानी
कुछ ऐसा प्यारा सा जादू
खुशी अपनी करे साझी
गुनगुनी सी धूप
घर पहुँचने का रास्ता
चेहरों पर हों
छिटकती है चाँदनी
ज़ुल्मों का मारा भी है
तितलियाँ
तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नफरत का भूत
नित नई नाराज़गी
पंछी
बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते हैं
हर एक को
हर किसी के घर का संकलन में-
प्यारी
प्यारी होली में |
|
फुरसतों के शहर
में
सो रहा था चैन से मैं फुरसतों के शहर में
जब जगा तो खुद को पाया हादसों के शहर में
फासले तो फासले हैं दो किनारों की तरह
फासले मिटते कहाँ हैं फासलों के शहर में
दोस्तों का दोस्त है तो दोस्त बन कर ही तू रह
दुश्मनों की कब चली है दोस्तों के शहर में
मिल नहीं पाया कोई फूलों का घर तो क्या हुआ
पत्थरों का घर सही अब पत्थरों के शहर में
हर किसी में होती हैं कुछ प्यारी-प्यारी चाहतें
क्यों न डूबे आदमी उन खुशबुओं के शहर में
धरती-अम्बर, चाँद-तारे, फूल-खुशबू, रात-दिन
कैसा-कैसा रंग है इन बंधनों के शहर में
१० मार्च २०१४
|