अनुभूति में
प्राण शर्मा की रचनाएँ—
नई रचनाएँ—
ताना बाना
फुरसतों के शहर में
हर लफ्ज़ कहानी है
हाथी-घोड़ा बन कर
गीतों में-
गीत अंजुमन में—
अपनी कथा
आदतें उसकी
उड़ते हैं हज़ारों आकाश में
क्यों न महके
कर के अहसान
कितनी हैरानी
कुछ ऐसा प्यारा सा जादू
खुशी अपनी करे साझी
गुनगुनी सी धूप
घर पहुँचने का रास्ता
चेहरों पर हों
छिटकती है चाँदनी
ज़ुल्मों का मारा भी है
तितलियाँ
तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नफरत का भूत
नित नई नाराज़गी
पंछी
बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते हैं
हर एक को
हर किसी के घर का संकलन में-
प्यारी
प्यारी होली में |
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ताना-बाना
टूटने लगता है सारा ताना-बाना
आँधियों में टिकता है कब शामियाना
उनको मत दिल में कभी अपने बिठाना
हो सके तो तू सभी झगड़े भुलाना
एक दिन की बात हो तो चल भी जाए
रोज़ ही चलता नहीं लेकिन बहाना
कुछ न कुछ तो खूबियाँ होंगी कि अब भी
याद करते हैं सभी गुज़रा ज़माना
हो भले ही कोई सूना-सूना आँगन
ढूँढ लेता है परिंदा दाना-दाना
लेना तो आसान होता है किसी से
दोस्त, मुश्किल होता है कर्ज़ा चुकाना
"प्राण" इनसाँ हो भले ही हो परिंदा
हर किसी को प्यारा है अपना ठिकाना
१० मार्च २०१४
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