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जड़ जिसने थी काटी
जहाँ उम्मीद हो ना मरहम की

जिस पे तेरी नज़र
झूठ को सच बनाइए साहब
तल्खियाँ दिल मे
तेरे आने की ख़बर
तोड़ना इस देश को
दिल का दरवाज़ा
दिल का मेरे
दिल के रिश्ते
नीम के फूल
पहले मन में तोल
फूल ही फूल

फूल उनके हाथ में जँचते नही
बात सचमुच
भला करता है जो
मान लूँ मै
मिलने का भरोसा
याद आए तो
याद की बरसातों में
याद भी आते क्यों हो
ये राह मुहब्बत की
लोग हसरत से हाथ मलते हैं

वो ही काशी है वो ही मक्का है
साल दर साल

`

ये राह मुहब्बत की

तनहाई की रातों में कभी याद ना आओ
हारुँगा मुझे मुझसे ही देखो ना लड़ाओ

किलकारियाँ दबती हैं कभी गौर से देखो
बस्तों से किताबों का जरा बोझ हटाओ

रोशन करो चराग ज़ेहन के जो बुझे हैं
इस आग से बस्ती के घरों को ना जलाओ

खुशबू बड़ी फैलेगी यही हमने सुना है
ईमान के कटहल को अगर आप पकाओ

बाजार के भावों पे नज़र जिसकी टिकी है
चांदी में नहाया उसे मत ताज दिखाओ

ये दौड़ है चूहों की जिसका ये नियम है
बढ़ता नज़र जो आये उसे यार गिराओ

होती हैं राहें नीरज पुरपेच मुहब्बत की
गर लौटने का मन हो मत पाँव बढ़ाओ

1 दिसंबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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