वो ही काशी है वो
ही मक्का है देखने में
मकां जो पक्का है
दर हकीकत बड़ा ही कच्चा है
ज़िंदगी कैसे प्यारे जी जाए
ये सिखाता हरेक बच्चा है
छाँव मिलती जहाँ दुपहरी में
वो ही काशी है वो ही मक्का है
जो अकेले खड़ा भी मुस्काये
वो बशर यार सबसे सच्चा है
जिसको थामा था हमने गिरते में
दे रहा वो ही हमको धक्का है
आप रब से छुपाएँगे कैसे
जो छुपा कर जहाँ से रख्खा है
जब चले राह सच की हम "नीरज"
हर कोई देख हक्का बक्का है
५ मई २००८
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