लोग हसरत से हाथ मलते हैं
आँख से याद बन के ढलते हैं
वो जो हर साँस साथ चलते हैं
हम हैं काँटे ना कीजिए नफ़रत
हम भी फूलों के साथ पलते हैं
लुत्फ़ इसका भी पूछिए उनसे
लड़खड़ाकर के जो सँभलते हैं
वक्त आने पे आख़िरी देखा
लोग हसरत से हाथ मलते हैं
सो गए जिन्न खो गई परियाँ
बच्चे ना इनसे अब बहलते हैं
सच की पुख्ता ज़मीन पे चलिए
देखिए फिर कहाँ फिसलते हैं
ग़म नहीं गर कहे बुरा दुनिया
अच्छे इंसां से लोग जलते हैं
जिस्म के साथ दिल नहीं थकता
कितने अरमां अभी मचलते हैं
ज़िंदगी भर क्या दौड़ना नीरज
आओ कुछ देर को टहलते हैं
24 जुलाई 2007