रुबाइयाँ
1
मेरे दिल को समझती हो
मैं सच ये मान जाता हूँ
तेरे दिलकी हर इक धड़कन
को मैं भी जान जाता हूँ
मगर फिर भी ये लगता है
कहीं कुछ बात है हममें
जिसे ना जान पाती तुम
ना मैं ही जान पाता हूँ
2
ये सूखी इक नदी-सी है
कहाँ कोई रवानी है
इबारत वो है के जिसका
नहीं कोई भी मानी है
मैं कहना चाहता जो बात
बिल्कुल साफ़ है जानम
तुम्हारे बिन गुज़रती जो
वो कोई ज़िंदगानी है?
3
तुम्हारे साथ रोते हैं
तुम्हारे साथ हँसते हैं
कहीं पर भी रहें लगता है
जैसे साथ रहते हैं
जो दूरी का कभी अहसास
होने ही नहीं देता
मेरी नज़रों से देखो तो
इसी को प्यार कहते हैं
4
चलो आओ बुने मिलकर
सुनहरी रेशमी सपने
ना हों आकाश के सपने
जुड़े धरती से हों सपने
वो सपने देखकर जीवन में
जिनसे रंग भर जाए
हमारी चाह के सपने
हमारे प्यार के सपने
5
अलग अहसास होता है
के जब तू पास होता है
हर इक लम्हा तुम्हारे साथ का
कुछ ख़ास होता है
के ज्यों बरसात की बूँदो को
किरने आ के छूती हैं
फिज़ा में रंग बरसता है
धनक फिर मुस्कुराता है
24 फरवरी 2007
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