दिल का दरवाज़ा
करम फ़रमाएगा,
ये सोच मैं आया नहीं करता
नहीं कुछ पास, लेकिन हाथ फैलाया नहीं करता
खुला है दिल का दरवाज़ा, वो
चाहे जब भी आ जाए
तक़ल्लुफ़ में मैं अपना वक्त यों ज़ाया नहीं करता
परों पर नाज़ है, बेशक उड़ो तुम
आसमानों में
डरा गिरने से गर कोई वो उड़ पाया नहीं करता
भलाई से नहीं पाया है कुछ, उस
शख़्स ने यारों
भलाई फिर भी करने से, वो घबराया नहीं करता
हज़ारों ख़्वाहिशें रखते हैं जो
उनके निकलते दम
नहीं ख़्वाहिश बड़ी कोई मैं पछताया नहीं करता
बड़ा मशहूर है हर दम घिरा रहता
है लोगों में
मगर तन्हा है दिल उसका, वो जतलाया नहीं करता
बहुत जल्दी है तुमको, यार यों
क्यों दौड़े जाते हो
तुझे जाना कहाँ है कुछ समझ आया नहीं करता
चलो 'नीरज' कहीं बैठो, घनेरी
ठंडी छाँवों में
कि फ़ुरसत का ये मौसम, लौट कर आया नहीं करता
16 जुलाई 2006
|