बात सचमुच
बात सचमुच में निराली हो गईं
झूठ जब बोला तो ताली हो गई
फेर ली जाती झुका कर थी कभी
उस शरम से आँख खाली हो गई
मिल गई उनको इजाज़त जुल्म की
अपनी तो फ़रियाद गाली हो गई
इक नदी बहती कभी थी जो यहाँ
बस गया इंसा तो नाली हो गई
ये असर हम पे हुआ इस दौर का
भावना दिल की मवाली हो गई
डाल दीं भूखे को जिसमें रोटियाँ
वो समझ पूजा की थाली हो गई
हाथ में क़ातिल के ''नीरज'' फूल है
बात अब घबराने वाली हो गई
१७ नवंबर २००८
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