तोड़ना इस देश को
तोड़ना इस देश को, धंधा हुआ
ये सियासी खेल अब गंदा हुआ
सर झुका कर रब वहां से चल दिया
नाम पर उसके जहां दंगा हुआ
तोल कर रिश्ते नफा नुक्सान में
आज तन्हा किस कदर बंदा हुआ
क्या छुपाने को बचा है पास फिर
आदमी जब सोच में नंगा हुआ
मौत से बदतर समझिये जिंदगी
जोश लड़ने का अगर ठंडा हुआ
आँख जब से लड़ गयी है आपसे
नींद से हर शब मिरा पंगा हुआ
दूर सारी मुश्किलें उस की हुईं
पास जिसके आपका कंधा हुआ
जो पराई पीर में "नीरज" बहा
अश्क का कतरा,वही गंगा हुआ
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