कहानी में
कहानी में हमारी ज़िंदगी का रंग, आ जाता
तुम्हारा नाम मेरे नाम के जब संग, आ जाता
मुहब्बत है कि नफ़रत है, कोई ये हमको समझाए
कभी तू जान दे मुझ पर, कभी तू तंग, आ जाता
जो बोलूँ झूठ तो मिलती मुझे, मालाएँ फूलों की
मगर सच बोलते ही सर पे मेरे संग, आ जाता
अकेले ही चले, दामन पकड़ कर, हम शराफ़त का
नहीं तो, साथ चलने का सभी के ढंग, आ जाता
बुढापा है, थकावट है, मगर पहली-सी चाहत है
तुझे बस याद करते ही गया जो रंग, आ जाता
बिताते तुम, जो 'नीरज' ज़िंदगी, संग इन
गुलाबों के
तो काँटों बीच, रहने का, तुम्हें भी ढंग, आ जाता।
16 जुलाई 2006
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