तेरे आने की ख़बर
कुछ सदा में रही कसर शायद
वरना जाते यहीं ठहर शायद
दर्द तनहाई का ना पूछ मुझे
उससे बदतर नहीं कहर शायद
तेज़ थी धूप छा गई बदली
तेरे आने का है असर शायद
बोलती बंद आजकल उसकी
आइना आ गया नज़र शायद
गीत पत्थर भी हैं लगे गाने
तेरे छूने की है ख़बर शायद
फिर जलाई हथेलियाँ उसने
शमां आँधी से बचाकर शायद
सिल गए होंठ दुश्मनों के तभी
जबसे उसने कसी कमर शायद
फिर घटा याद की है गहराई
अब करेगी ये आँख तर शायद
सच अकेला है भीड़ में 'नीरज'
कल ज़माना करे कदर शायद
16 जुलाई 2006
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