फूल उनके हाथ में जँचते नहीं
झूठ को ये सच कभी कहते नहीं
टूट कर भी आइने डरते नहीं
हो गुलों की रंगो खुशबू अलहदा
पर जड़ों में फ़र्क तो दिखते नहीं
जिनके पहलू में धरी तलवार हो
फूल उनके हाथ में जँचते नहीं
अब शहर में घूमते हैं शान से
जंगलों में भेड़िये मिलते नहीं
साँप से तुलना ना कर इंसान की
बिन सताए वो कभी डसते नहीं
कुछ की होंगी तूने भी ग़ुस्ताखियाँ
खार अपने आप तो चुभते नहीं
बस खिलौने की तरह हैं हम सभी
अपनी मर्ज़ी से कभी चलते नहीं
फल लगी सब डालियाँ बेकार हैं
गर परिंदे इन पे आ बसते नहीं
ख़्वाहिशें नीरज बहुत सी दिल में हैं
ये अलग है बात कि कहते नहीं
24 जुलाई 2007 |