कभी ऐलान ताकत का
कभी ऐलान ताक़त का, हमें करना ज़रूरी है
समंदर ओक में अपनी, कभी भरना ज़रूरी है
उठे सैलाब यादों का, अगर मन में कभी तेरे
दबाना मत कि उसका, आँख से झरना ज़रूरी है
तमन्ना थी गुज़र जाता, गली में यार की जीवन
हमें मालूम ही कब था यहाँ मरना ज़रूरी है
किसी का खौफ़ दिल पर, आजतक तारी न हो पाया
किया यों प्यार अपनों ने, लगा डरना ज़रूरी है
दुखाना मत किसी का दिल, खुशी चाहो अगर पाना
ज़रा इस बात को बस, ध्यान में धरना ज़रूरी है
कहीं है भेद "नीरज" आपके कहने व करने में
छिपाना आँख को सबसे, कहाँ वरना ज़रूरी
१७ नवंबर २००८
|