मूर्खता के दोहे
मूर्ख जो देखन मैं चला, मूर्ख ना मिलया कोय
जब देखा मैं आइना, मिल गया मूरख मोय
मूर्ख बनें तो यों बनें, जैसे गधा हजूर
ना घर का ना घाट का, पिटता बिना कसूर
काल बने सो आज बन, आज बने सो अब
जब परलय हो जाएगी, क्या मूर्ख बनेगा तब?
जो तोकू मूरख कहे, कह उसको विद्वान
तू मूरख बच जाएगा, उसकी जाए जान
आके सभी बिहार में, मूरख हो गए मौन
अब लालू वक्ता भये, उनको पूछत कौन
मूरख वाणी बोलिए, समझ न कोइ पाय
श्रोता सुन पागल बनें, वक्ता सर खुजलाय
'नीरज' भाषा मूर्ख की, कभी ना जाए व्यर्थ
सुनकर सभी लगा रहे, अपने-अपने अर्थ
24 अक्तूबर 2006
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