तिमिर चरण
आलोक पैजनी
थिरक-थिरक मावस की रजनी
.
नख से शिख दीपक आभूषण
अंधकार का
आत्म समर्पण
काहे का संकोच बावरी
ताल-ताल नर्तन कर सजनी
.
नरम -नरम
नैनू सी बिखरी
शीत-धूप सी ज्योति सुनहरी
लौ दीपक की
जैसे पिय की
बरज रही एकान्त तर्जनी
.
झिलमिल के संकेत नखत के
कुंकुम के रोली अक्षत के
केशर ज्योति दिये में घुलता
तम का काजल
नील - बैजनी
.
- उमाकांत मालवीय
.