फिर चलो देहरी -दुआरे
स्नेह के हम दीप बारें
भीतियों पर फिर उकेरें
साँतिये शुभकामना के
अल्पनाओं में भरे फिर
रंग सच्ची भावना के
रोशनी की नव किरण से
आज घर-आँगन बुहारें
ग्रंथियाँ मन की सभी
हम आज गंगा में सिरायें
दीप लहरों में नये संकल्प
के फिर से तिराये
बैठकर तट पर मनोरम
दृश्य ये अपलक निहारें
उतर आयी हो धरा पर
ज्यों गगन की तारिकायें
गा रही हैं गीत मंगल
द्वार पर शुक-सारिकायें
रह न जायें आज आँखों के
कहीं सपने कुँवारे
स्वर्ग से संवाद करतीं
ये धवल अट्टालिकायें
नाचती गाती थिरकती
सघन विद्युत मालिकायें
चिर-प्रतीक्षित इस निशा पर
आज सौ -सौ दिवस वारें
- मधु शुक्ला
१ नवंबर २०१८ |