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चक्रवातों से लड़ेगा फिर समर
में
एक नन्हे दीप ने
निश्चय किया
पूर्णिमा की रात हो या हो अमावस
ज्योत्सना ने अमर की जो पर्व तिथियाँ
जो कथा बाँची गई देवालयों में
आज भी उपलब्ध हैं वे पांडुलिपियां
ज्योतिधर्मा दीप की
निष्ठा अलौकिक
देख सूरज ने बड़ा
विस्मय किया
तिमिरवंशी दिग्विजय के अश्व रोके
क्षण रचे आलोक उत्सव के यहाँ
राजसी अट्टालिकाओं में जला तो
दीन की देहरी कलुष छोड़ा कहाँ
शीश धर ज्योतिर्गमय
अनुबंध सारे
दुस्साहसी तमस से
परिचय किया
धूल माटी से बना अस्तित्व लघुतम
तेल बाती ने इसे जीवन दिया
बाँटता है दीप्ति दिनकर, दिन हुआ
किन्तु इसने रात को उज्ज्वल किया
विपथगामी हो न जाए
सान्ध्यवेला
कालिमा से दीप ने
परिणय किया
- रमेश गौतम
१ नवंबर २०१८ |