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आई है दीपावली, लेकर नव उल्लास।
छाया चारो ओर है, अनुपम दिव्य प्रकाश।।
जलते दीप कतार में, देते ये सन्देश।
दूर करें मिलकर सभी, आपस के सब द्वेष।।
कहीं पटाखे छूटते, जलता कहीं अनार।
खुशियाँ लेकर आ गया, दीपों का त्योहार।।
धीरे-धीरे जल उठे, देखो दीप अनेक।
आज धरा औ व्योम का रूप हो गया एक।।
दीपों का त्यौहार है, उजियारे के नाम।
इस दिन वन से लौटकर, आए थे श्री राम।।
दीपों से घर-घर सजा, ज्योतिर्मय घर द्वार।
धरती पर आया उतर, तारों का संसार।।
नारायणी, गणेश की पूजा होती आज।
इनके आशीर्वाद से, फलते हैं सब काज।।
उत्सव और उमंग का, दीपों का त्योहार।
नहीं पटाखे से करो, दूषित घर संसार।।
उत्सव मना प्रकाश का, सजा सकल परिवेश।
धन लाती है स्वच्छता, देती यह सन्देश।।
दीपों से जगमग करो, सब अपने घर-द्वार।
चीनी बल्बों को नहीं, घर लाना तुम यार।।
- जनकवि दीनानाथ सुमित्र
१ नवंबर २०१८ |