|
तेल भरे सबके दीपक हों
छा जाये हर द्वार उजाला
इस दीवाली सबके घर ही
सजें दीप, खुशियों की माला
दीपक की छोटी बाती को
चायनीज झालर धमकाते
त्योहारों के अर्थ पुराणिक
नये दिखावों में खो जाते
माटी का भी मोल मिले कुछ
उसके सपने भी अँखुआते
जिसने चाक घुमा, माटी को
श्रम से है दीपों में ढाला
जगमग हो मावस कातिक की
सबकी खातिर हो दीवाली
श्री पहुँचें सबके घर-द्वारे
कहीं न बाकी हो कंगाली
गायें मंगलगीत सभी जन
खील-बताशे हो खुशहाली
चाहें छप्पन भोग नहीं हों
हो पर सबके लिए निवाला
दीवाली तो कई मन चुकीं
बाकी आना रामराज्य पर
महलों पर तो रामकृपा है
बचे अभी दीनों के हैं घर
अबकी ऐसी दीवाली हो
जो ले सबके घर का तम हर
सभी वर्ग के लिए खुशी हो
हटे सुखों से दुख का ताला
- गरिमा सक्सेना
१ नवंबर २०१८ |