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         दीप जलाएँ

   



 

भक्ति भाव जगाकर मन में
आओ दीप जलाएँ

रात अमावस का अँधियारा
सभी दिशाओं में फैला है
जैसे कोई रंग उजेरा
हुआ कालिमा से मैला है
रख दें दीपक एक जलाकर
सुन्दर जगमग निशा बनाएँ

ओंठों पर मुस्कान मधुर ले
दिया स्नेह का जले निरंतर
समरस हो जाएं सुख दुख में
आपस के मतभेद भुलाकर
पर्व रौशनी का है पावन
निश्छल मन से इसे मनाएँ

आधुनिकता के आकर्षण में
खो जाती पर्वों की गरिमा
जिनमें उलझे भूल रहे हम
भारतीय संस्कृति की महिमा
बहुत जरूरी है हर मन में
राष्ट्रप्रेम का भाव जगाएँ

आँखों में वैभव के सपने
और खुशी के आँसू लेकर
जीवन की समझें सार्थकता
साथ सभी के आगे बढ़ कर
जहाँ दिखे मुश्किल में कोई
बढ़ें मदद का हाथ बढ़ाएँ

- सुरेन्द्रपाल वैद्य
१ नवंबर २०१८

   

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