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मावसी त्रासद व्यथा सहना
नहीं
तुम अंधेरों की कथा कहना नहीं
लोग बहते हों, बहें मझधार में
तुम विवश निरुपाय हो बहना नहीं
एक दिन होगी तुम्हीं से रोशनी
व्यर्थ तुम कुंठाग्नि में दहना नहीं
स्वार्थ की पूजा जहां दिन- रात हो
हो भले मंदिर, वहां रहना नहीं
बन न पाओ तुम शिला गर लौह की
रेत की दीवार बन ढहना नहीं
लौट कर आता नहीं बीता समय
डूबती परछाइयां तहना नहीं
लाख दुख ‘वर्षा’ मिलें, मिलते रहें
तुम बुराई की डगर गहना नहीं
- डॉ. वर्षा सिंह
१ नवंबर २०१८ |