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         मावस की रजनी

   



 

तिमिर चरण
आलोक पैजनी
थिरक-थिरक मावस की रजनी

नख से शिख दीपक आभूषण
अंधकार का
आत्म समर्पण
काहे का संकोच बावरी
ताल-ताल नर्तन कर सजनी

नरम -नरम
नैनू सी बिखरी
शीत-धूप सी ज्योति सुनहरी
लौ दीपक की
जैसे पिय की
बरज रही एकान्त तर्जनी

झिलमिल के संकेत नखत के
कुंकुम के रोली अक्षत के
केशर ज्योति दिये में घुलता 
तम का काजल
नील -बैजनी

- उमाकांत मालवीय
१ नवंबर २०१८

   

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