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आया है फिर साथ में, लेकर खुशी अपार।
दीवाली के पर्व पर, रौशन है संसार।।
देखो अंधेरा कहीं, आये नहीं समीप।
आओ मिलकर दीप से, चलो जलाएँ दीप।।
जीवन में टूटें नहीं
आस और विश्वास।
ज्योतिपर्व की रौशनी, भरती रहे उजास।।
धूम-धड़ाका हो रहा, फूटें खूब अनार।
चकरी की पूछो नहीं, उसके रंग हज़ार।।
धर्मयुद्ध के अंत में, होता है हर बार।
विजय मिली है सत्य को, गई बुराई हार।।
कहा दीप ने दीप से, करना है उजियार।
मिलकर वे करने लगे, रौशन यह संसार॥
कुम्हारों का भी भला, रौशन घर-संसार।
माटी के दीपक जलें, खिल जाता त्यौहार।।
मन में तम छाया हुआ, जला रहे हैं दीप।
मन को यदि उजला करें,खुशियाँ रहें समीप।।
जहाँ बसे हैं एकता, और परस्पर प्यार।
हर दिन दीवाली वहाँ, हर दिन है त्यौहार।।
- सुबोध श्रीवास्तव
१ नवंबर २०१८ |