अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर


वहाँ दिये की सख्त जरूरत

   



 

जहाँ अँधेरा है सदियों से
वहाँ दिये की सख्त जरूरत

वंचित-अभिवंचित के सारे
तिमिर-तोम घर-घर से भागें
घने जंगलों या पर्वत पर
जहाँ कहीं नर-नारी जागें

गाएँ मंगलगीत ज्योति के
आया है अब खास मुहूरत

सबके जीवन में प्रकाश हो
क्यों कोई बैठा निराश हो
दीपों की माला सज जाए
तम का बंधन नहीं पाश हो

सब की सूरत खिले-खिले हों
कहीं न कोई हो बदसूरत

अन्धकार पर विजय प्राप्त हो
मंज़िल तक हम चलें साथ हो
सभी सुखी हों धन-वैभव से
सबके हित की सदा बात हो

मने दीवाली सभी घरों में
लाएँ घर लक्ष्मी की मूरत

- कैलाश झा किंकर
१ नवंबर २०१८

   

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter