जहाँ अँधेरा है सदियों से
वहाँ दिये की सख्त जरूरत
वंचित-अभिवंचित के सारे
तिमिर-तोम घर-घर से भागें
घने जंगलों या पर्वत पर
जहाँ कहीं नर-नारी जागें
गाएँ मंगलगीत ज्योति के
आया है अब खास मुहूरत
सबके जीवन में प्रकाश हो
क्यों कोई बैठा निराश हो
दीपों की माला सज जाए
तम का बंधन नहीं पाश हो
सब की सूरत खिले-खिले हों
कहीं न कोई हो बदसूरत
अन्धकार पर विजय प्राप्त हो
मंज़िल तक हम चलें साथ हो
सभी सुखी हों धन-वैभव से
सबके हित की सदा बात हो
मने दीवाली सभी घरों में
लाएँ घर लक्ष्मी की मूरत
- कैलाश झा किंकर
१ नवंबर २०१८ |