चली जलाने दीप अमावस
पूजा-घर आंगन-चौबारे
उगते सूरज के हिस्से
सजी दिवाली दुलहन जैसी
बल्बों के संजाल रमे हैं
नेपाली संवत् के घर में
गुजराती पंडाल जमे हैं
यम-नचिकेता के प्रसंग पर
कई अयोध्या और शहर हर
हँसे चंद्रमा के किस्से
कार्तिक बदी अन्हरिया की
यह नूरानी रजनी आसा
आती-पाती खेल रहा है
आतिश का बारहमासा
फोड़ रहे हैं खूब पटाखे
घिरनी के अपलक मतवाले
ड्योढ़ी के बिसवा-बिस्से
सरसों तेल पिलाता अमृत
बत्ती दीया की पटरानी
साथ-साथ घर कोने-अँतरे
लिखे चलन की एक कहानी
उछल-उछल खिड़की-गलियारे
आस्था की आरती उतारे
बाँट रहे खुशियों के पिस्से
- शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'
१ नवंबर २०१८ |