तन्द्रिल तन्द्रिल
स्वप्निल स्वप्निल
कंदीलों की झिलमिल झिलमिल
मुँडेरों पर दीवारों पर
छज्जों के ग़झिन किनारों पर
कुछ देहरी और दीवारों पर
कुछ मंदिर और मीनारों पर
है समर तमस से दिए का
उर्मिल उर्मिल
वर्तुल वर्तुल
कुछ पंक्तिबद्ध से उजियारे
जिनसे नभ के तारे हारे
इस दीप सिपाही के आगे
थक गये रात के बंज़ारे
फ़िर शुभ का स्वस्ति सिंधु उजला
फेनिल फेनिल
उज्जवल उज्जवल
गढ़ लेती है परिभाषाएँ
पढ़ लेती मन की भाषायें
उन्मीलित दीप शिखा जल जल
क़ीलित करती हर बाधाएँ
दीपो भव 'अप्प भवो दीपो’
हर पल हर पल
निर्मल निर्मल
- रंजना गुप्ता
१ नवंबर २०१८ |