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दीपक बाती तेल मेल
दीवाली में
आँगन-चौखट-द्वार खड़े अगवानी में
सजी धजी सी साँझ उतरती पानी में
घर के क्वाँरे हाथ सजाते रंगोली
नाना लाये खील बताशे भर झोली
हँसें पटाखे खेल-खेल
दीवाली में
देवी की पूजा में थाली सोने की
काजल पारे रात बात कर टोने की
औघड़ तो जमघंट जगाता मरघट में
कुछ अड्डों पर जुआ हो रहा जमघट में
दिये गये कुछ ठेल जेल
दीवाली में
उल्लू की आँखों से अंजन खूब बने
जला लुकाठी खेल रहे दस-बीस जने
खेतों के भी दिन बहुरे जब कोन जगे
साफ-सफाई उजियारा ! दिन, रात लगे
उगी नेह की नई बेल
दीवाली में
- उमाप्रसाद लोधी
१ नवंबर २०१८ |