पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१. ९. २०१६

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चंदन हम तो बन जाएँगे

 

 

चन्दन
हम तो बन जायेंगे
यदि तुम पावन जल बन जाओ

प्राणों की
वंशी ने अब तक
सिर्फ तपन औ' तड़पन पाई
ऋतु वासन्ती मादकतामय
पर सूनी
मन की अमराई

कुछ मधुमय
स्वर खिल जायेंगे
यदि तुम कोकिल बन कर गाओ

अलसाई
भोर सजल साँझें
उन्मत रातें फिर महक उठें
कंगन में फिर सिहरन जागे
सोये नुपूर
फिर झनक उठे

पोर-पोर
हम बौरायेंगे
यदि तुम सौरभ बन कर छाओ

- मधु प्रधान

इस पखवारे

गीतों में-

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मधु प्रधान

अंजुमन में-

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महावीर उत्तरांचली

दिशांतर में-

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कृष्णा वर्मा

दोहों में-

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रतनप्रेमी प्रजापति

पुनर्पाठ में-

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डॉ. अजय पाठक

 पिछले पखवारे
१ अगस्त २०१६ को प्रकाशित रक्षाबंधन विशेषांक में

गीतो में- अखिल बंसल, अशोक शर्मा कटेठिया, अश्विनीकुमार विष्णु, अमिताभ त्रिपाठी अमित, आभा खरे, कुमार गौरव अजीतेन्दु, कृष्ण भारतीय, नीरज द्विवेदी, प्रेरणा गुप्ता, भावना तिवारी, मधु प्रधान, मधु शुक्ला, रंजना गुप्ता, वेदप्रकाश शर्मा वेद, शंभु शरण मंडल, शशि पाधा, शुभम श्रीवास्तव ओम, संजीव वर्मा सलिल, सीमा अग्रवाल, सौरभ पाण्डे
अंजुमन में- अमित वागर्थ, आभा सक्सेना, कल्पना रामानी, बसंत कुमार शर्मा, संजू शब्दिता, सुरेन्द्रपाल वैद्य
छंदों में- ओमप्रकाश नौटियाल, कल्पना मनोरमा, मंजु गुप्ता, राम शिरोमणि पाठक, शशि पुरवार, परमजीत रीत, सरस्वती माथुर, सीमा हरिशर्मा।

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी