हर गली बाजार में अब छा गई
हैं राखियाँ
प्रेम का त्यौहार लेकर आ गई हैं राखियाँ
दूर भाई है अगर तो क्या हुआ, चिंता नहीं
कूरियर के साथ भी तो जा रहीं हैं राखियाँ
राखियाँ जिसने बनाईं शुक्रिया उसका भी है
हर बहिन के प्यार को दिखला रही हैं राखियाँ
डोर हैं ये प्यार की बस जोड़ना हैं जानतीं
हाथ में बँधकर दिलों तक जा रहीं हैं राखियाँ
हार चूड़ी और कँगना
चाहिए कुछ भी नहीं
मात्र रक्षा का वचन भरवा रहीं हैं राखियाँ
मोल राखी का चुकाना
है बड़ा मुश्किल यहाँ
देख लो इतिहास को समझा रहीं हैं राखियाँ
खीर है, मीठी सिवैयाँ, बन रहे पकवान हैं
है अगर रूठा कोई, मनवा रही हैं राखियाँ।
साल का त्यौहार है रिश्ते निभाने के लिये
याद बचपन फिर हमें करवा रही हैं राखियाँ
बसंत कुमार
शर्मा
१५ अगस्त २०१६ |