नींद में बीते हुए दिन
रात में जागे हुए
उल्लुओं की बात है
वे किस तरह आगे हुए
एक सूरजकी किरण वो
दूर से चमकी बहुत
बादलों ने ओढ़ ली हैं
चादरें तम की बहुत
हम क्षितिज को हेरते हैं
रोज ही भागे हुए
बात थी धन आएगा तो
धर्म भी आ जाएगा
धर्म के आने से जग में
सुख मनुज पा जाएगा
सुख की कथरी में कई
पैबंद हैं तागे हुए
मोल है रिश्तों का कितना
जब अनैतिक कर्म है
बात है सीधी तरह की
चोट खाया मर्म है
राखियों के बंधनों के
कीमती धागे हुए
- अशोक शर्मा 'कटेठिया'
१५ अगस्त २०१६ |