फिर छत पर
घिर आये बादल
नीर भरे अकुलाये बादल
टूटा धागा बिखरे मोती
रूठ गए सपने मन भावन
भूली कजरी, चुप हैं झूले
यह सावन भी कैसा सावन
सूनी छत और सूना आँगन
देख बहुत घबराये बादल
थमी हुई लय गीत अधूरे
सूनी-सूनी पूरनमासी
कोई कहीं, कहीं पर कोई
सपने भी हो गए प्रवासी
रिम-झिम बूँदों के उदास स्वर
चुप-चुप बहा नयन से काजल
महक लिए ताजी मेहँदी की
नर्म हथेली, मीठी दहकन
राखी धागे लिये हाथ में
छोटी गुड़िया की वो ठनगन
सरल सलोने से अतीत की
सुधि में यूँ बौराये बादल
- मधु प्रधान
१५ अगस्त २०१६ |