धूम मची
बाज़ार हाट में
रक्षाबंधन की
ढूँढ रहे हम कच्चे धागे
पक्के बंधन के
सोने चाँदी की राखी में
रिश्ते चन्दन के
हाँफ रही है एक रिवायत
चिपके बंधन की
"बध्यो येन" तर्ज है केवल
सुर लय हाथ मिलाते
समय-गान के साथ खड़े हैं
छंदों को सहलाते
मर्म चुका है, शेष बची
भाषा अभिन्दन की
कच्चे धागे हमें देखते
हम उनको जैसे
पूछ रहे कैसे होते थे, हम
पर, अब कैसे
नक्कारों में कौन सुने पर
सिसकी क्रंदन की
बहन बराबर है भाई में
यह विश्वास बड़ा हो
वह भी उसके साथ खडी हो
वह भी साथ खड़ा हो
दोनों मिलकर रहें सींचते
क्यारी बचपन की
काश कि ये गंधें लौटें
फिर
रक्षाबंधन की
- वेद प्रकाश शर्मा वेद
१५ अगस्त २०१६ |