पुनः जिलाना
होगा हमको
रक्षाबंधन को
सच है केवल करें प्रदर्शन
झूठे नेहों का
नर भक्षी बन दोहन करता
नारी देहों का
किसने कब जाना है उनके
दारुण क्रंदन को
एक बहन अपनी बाकी को
जमकर तंग करें
छेड़ाखानी और यहाँ तक
इज्जत भंग करें
मन पापित फिर भी बँधवाते
पावन बंधन को
रोज निर्भया और दामिनी
लज्जित होती हैं
एक दिवस राखी हाथों में
सज्जित होती हैं
क्या ये सारा विषय नहीं है
सबके मंथन को
ये धागा रक्षा का अबके
बाँधो सारे भाई
शुद्ध करो अपने मन जिनमें
मादकता अधिकाई
बँधवाओ तब राखी, मस्तक
धारो चंदन को
- डॉ अखिल बंसल
१५ अगस्त २०१६ |