हर सावन में
बहना तेरी, याद सताती है
सूनी सूनी मेरी कलाई, आज रुलाती है
पहले आती थी राखी पर, क्या है नाराज़ी
तेरी ये ही बात मेरा दिल, दहला जाती है
जिस सीढ़ी पर साँझ सवेरे खेला करते थे
वह सीढ़ी अँगना की सब कुछ याद दिलाती है
जब से तू ससुराल गयी है सूना है यह घर
याद तेरी हर प्यारी-प्यारी मन बहलाती है
बच्चों को देखे कितने ही दिन हैं बीत गए
जीजाजी से कहना, भाभी उन्हें बुलाती है
बिस्तर पर मैं पड़ा हुआ बीमारी ने जकड़ा
मिलने की इच्छा ही तुझको टेर बुलाती है
राखी की अब बात न कर बस जल्दी आ जाना
मेरी हर इक साँस मिलन की आस जगाती है
- आभा सक्सेना
१५ अगस्त २०१६ |